देहरादून- आखिर में भारतीय जनता पार्टी ने दोहराया अपना पुराना इतिहास
आखिर कर्मठ एवं इमानदार छवि के सीएम त्रिवेंद्र रावत को अपने 3 वर्ष 11 माह 21 दिन के कार्यकाल में ही देना पड़ा पद से इस्तीफा त्रिवेंद्र रावत संगठन के बल पर उत्तराखंड के सीएम बने थे लेकिन राजनीतिक गलियारों में जिस दिन से वह मुख्यमंत्री बने उसी दिन से उन को पद से हटाने की चर्चाएं शुरू हो गई थी कहीं ना कहीं उनकी स्वच्छ छवि एवं ईमानदार कार्यकुशलता के कारण उन्हें केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन त्रिवेंद्र रावत ने जहां एक तरफ उत्तराखंड के लिए अलग-अलग इतिहास रचे लेकिन इन सब बातों के अलावा उनके कार्यालय में बैठे अधिकारी और कर्मचारी खास करके मुख्यमंत्री आवास एवं चतुर्थ तल के अधिकारी कर्मचारियों का जो जनता के प्रति रवैया था वह भी निराशाजनक था कहीं न कहीं जनता एवं जनप्रतिनिधियों को सम्मान नहीं मिलता था जिस कारण उनके प्रति जनता एवं जनप्रतिनिधियों में भी रोष था हालांकि त्रिवेंद्र रावत की अभी तक राज्य में किसी प्रकार का कोई भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया लेकिन कहीं न कहीं उनकी इर्द-गिर्द घूमने वाले चाटुकार उन्हें मुसीबत में डालने लगे इसी का कारण है कि आए दिन विधायक दिल्ली में जमावड़ा लगाते हैं और उनके प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं मुख्यमंत्री कार्यालय एवं मुख्यमंत्री आवास से भी जनप्रतिनिधि हमेशा अपनी नाराजगी जताते रहे आखिर में उसका नतीजा त्रिवेंद्र रावत को भुगताना पड़ा