पद्मश्री डॉ. बी. के. एस. संजय का नागरिक अभिनन्दन

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देहरादून-   वैदिक साधन आश्रम तपोवन नालापानी देहरादून एवं आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तराखण्ड द्वारा आत्मकल्याण का स्वर्णिम अवसर पर सामवेद परायण यज्ञ का विशेष आयोजन अध्यक्ष विजय कुमार गोयल, कोषाध्यक्ष अशोक कुमार वर्मा, सचिव प्रेम प्रकाश शर्मा जी द्वारा किया गया। इस आयोजन के दौरान मुख्य अतिथि माननीय मंत्री यतीश्वरानन्द जी माननीय कैबिनेट मंत्री, उत्तराखण्ड एवं पद्म डॉ. बी. के. एस. संजय जी का आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तराखण्ड एवं वैदिक साधन आश्रम सोसाइटी द्वारा सामूहिक अभिनन्दन किया गया। कार्यक्रम का संचालन आर्यन शत्रुघ्न कुमार मौर्या एवं समाज सेवी योगेश अग्रवाल द्वारा किया गया। डॉ. संजय ने अपने संबोधन में बताया कि भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य की तिकड़ी हर व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। किसी भी विचार का प्रचार-प्रसार केवल शिक्षा के माध्यम से ही किया जा सकता है।

इस बात को आप समझते होंगे कि संवाद के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं किया जा सकता है और दो व्यक्तियों के बीच में संवाद के लिए एक सांझे की आम भाषा की आवश्यकता होती है जिसको दोनों व्यक्ति समझते हों। अंग्रेजी शासन एवं अंग्रेजी सभ्यता के आने के बाद, भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के विलुप्तीकरण की आशंका को देखते हुए आर्य समाज संस्था के पृवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज संस्था की 

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  स्थापना की। स्वामी दयानन्द जी के बारे में एक बात बताना चाहूँगा कि उन्होंने शिक्षा के महत्व को बहुत समझा इसीलिए शिक्षा पर वह बहुत जोर देते थे और कहते थे कि माँ-बाप को अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहिए और उनके उच्च नैतिक मूल्य बढ़ाने चाहिए। इसीलिए आर्य समाज संस्था के अनुयायियों ने स्वामी दयानन्द सरस्वती की याद में 1 जून 1886 को प्रथम डी.ए.वी. स्कूल की लाहौर में स्थापना की और आज पूरे देश में दयानन्द एंग्लो वैदिक यानि कि डी.ए.वी. नाम के हजारों विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय चल रहे हैं। स्वामी जी के बारे में दूसरी बात बताना चाहूँगा कि उन्होंने काम में बहुत महत्व दिया, काम में विश्वास रखा और भाग्य के सिद्धांत का विरोध किया।आर्य समाजी महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की मैं तीसरी बात और बताना चाहूँगा कि वह भारत के महान दार्शनिक, समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक हैं जिन्होंने वैदिक धर्म में बहुत से बदलाव लाए। मूर्ति पूजा और कर्मकाण्ड की पूजा जैसी कुरीतियों की उन्होंने घनघोर निंदा की और उन्होंने वैदिक या सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने अपने अनुयायियों एवं सभी अन्य धर्मों को मानने वालों से कहा कि सत्य को स्वीकार करना चाहिए और यह विचार सार्वभौमिक होना चाहिए क्योंकि सत्य सब लोगों के लिए समान होता है। इसी सिद्धांत को मानते हुए स्वामी जी ने सत्य को ग्रहण कर असत्य का परित्याग करना ही सब सुधारों का मूल मंत्र माना और और इसी मुल मंत्र को आगे बढा़ने का प्रचार-प्रसार किया। उनका सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ इस बात का प्रमाण है।लेकिन देश की वर्तमान 

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परिस्थितियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है, यहाँ पर खाने के दाँत और, दिखाने के दाँत और की कहावत पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है। जबकि हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे सत्यमेव जयते लिखा तो है लेकिन कुछ लोग सत्यमेव जयते यानि की सत्य ही जीतता के सिद्धांत पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं जिसका उदाहरण न्यायालय की घटनाओं से है। सोचने की बात है कि न्यायालय में आए हुए दोनों पक्षों में से कम से कम एक पक्ष तो असत्य बोल ही रहा होता है लेकिन उनसे जुड़े हुए दर्जनों और सैकड़ों लोग भी झूठ बोल रहे होते हैं। ऐेसे समाज का भविष्य कैसे उज्जवल हो सकता है? यह सोचने की बात है।समाज का विकास एवं राष्ट्र का निर्माण केवल लोगों की शारीरिक निकटता के कारण नहीं होता है बल्कि विचारों की समानता के कारण होता है। हम सब लोग जो आज यहाँ पर इकट्ठे हुए हैं यह इसका साक्षात प्रमाण है। मेरा मानना है शिक्षा सबको मिलनी चाहिए, सस्ती मिलनी चाहिए, अच्छी मिलनी चाहिए और एक सी मिलनी 

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चाहिए। जब हम सबको एक सी शिक्षा मिलेगी तभी हमारे विचार एक से होंगे, हम सब फिर एक सा सोचेंगे, एक सा करेंगे और एक से ही रहेंगे। यदि ऐसा नहीं होता है तो देश में विघटन की संभावना बनी रहेगी और पनपती भी रहेगी। इस कार्यक्रम के दौरान एस. एस. वर्मा, मानपाल सिंह राठी, गोविंद सिंह भण्डारी, भगवान सिंह, डॉ विश्वमित्र शास्त्री, पं. रूवेल सिंह, अशोक वर्मा, हरपाल सिंह, इन्द्रजीत मल्होत्रा, डॉ. विनोद कुमार शर्मा, पं. उम्मेद सिंह विशारद, मनमोहन आर्य, पी. डी. गुप्ता, पं. सूरत राम शर्मा, डॉ. वीरेन्द्र पंवार, आचार्य डॉ. धनन्जय, डॉ. वीरपाल, विद्यालंकार, पं. शैलेशमुनि सत्यार्थी, श्री ओम प्रकाश मल्लिक आदि मौजूद थे।  

 

 

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