देहरादून: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार मनोज कुमार चौधरी ने मानव भारती स्कूल, वेल्हम गर्ल्स स्कूल और आरआईएमसी के छात्रों के लिए स्पिक मैके के तत्वावधान में मधुबनी कार्यशालाओं का आयोजन किया।
कार्यशाला एक कला-आधारित शिक्षण सत्र रहा, जिसमें छात्रों को स्वदेशी कला रूप मिथिला एवं मधुबनी से परिचित कराया गया। छात्रों ने उत्साहपूर्वक अपने नए सीखे कौशल का प्रदर्शन किया और सीखने के अनुभव में सक्रिय रूप से भाग लिया।
कलाकार मनोज कुमार चौधरी दरभंगा, बिहार के रहने वाले पूर्णकालिक पेशेवर मिथिला पेंटिंग कलाकार हैं। उन्होंने मिथिला विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर भारती विकास मंच में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी सफलतापूर्वक पूरा किया। मनोज को दिल्ली राज्य पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार, दिल्ली कला मैराथन में स्वर्ण पदक विजेता, लायन अंतर्राष्ट्रीय कला प्रतियोगिता में स्वर्ण पुरस्कार, वैदेही अंतर्राष्ट्रीय कला प्रतियोगिता और प्रदर्शनी में दूसरा स्थान, और कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। मनोज मधुबनी पेंटिंग की पांच शैलियों में से चार सिखाते हैं जिनमें भरनी, कचनी, गोदना और भुचित्रा शामिल हैं।
छात्रों को मधुबनी कला के बारे में जानकारी देते हुए, मनोज चौधरी ने कहा, “मधुबनी पेंटिंग की शरूआत बिहार के मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले से हुई है। पेंटिंग एक निश्चित विषय के अनुसार बनायीं जाती हैं और तदनुसार, प्रतीक, रेखाएं और पैटर्न तैयार किए जाते हैं। ये पेंटिंग ज्यादातर प्रकृति और धार्मिक रूपांकनों को चित्रित करती हैं और विषय आमतौर पर देवताओं, प्रकृति, मछलियों, मोर, आदि को चित्रित करते हैं। प्राकृतिक वस्तुएं जैसे सूर्य और चंद्रमा, और तुलसी जैसे धार्मिक पौधों को भी व्यापक रूप से चित्रित किया जाता है। पेंटिंग कई वस्तुओं पर बनायीं जा सकती हैं जैसे हस्तनिर्मित कागज, कैनवास, दुपट्टा, स्टोल, आदि।”
आगे बोलते हुए, मनोज ने कहा, “मेरी कार्यशाला में जिन छात्रों ने हिस्सा लिया उनकी उम्र भले ही छोटी थी, लेकिन उनका जज़्बा बड़ा था। कार्यशाला के दौरान छात्रों ने खूब उत्साह के साथ बेहद खूबसूरत पेंटिंग बनायीं।”
कार्यशाला के दौरान मानव भारती स्कूल की प्राचार्या डॉ. गीता शुक्ला ने कलाकार मनोज कुमार चौधरी को विद्यार्थियों के प्रति समर्पित रहने के लिए उनका आभार व्यक्त किया। उन्होंने देहरादून के छात्रों को ऐसे प्रतिष्ठित कलाकारों से मिलने का सुनहरा अवसर देने और देश के कई पारंपरिक कला रूपों से परिचित कराने के लिए स्पिक मैके के प्रति आभार व्यक्त किया।
स्पिक मैके (सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ़ इंडियन क्लासिकल म्यूजिक एंड कल्चर अमंग युथ) एक गैर-राजनीतिक, राष्ट्रव्यापी स्वैच्छिक संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1977 में की गई थी। संगठन का उद्देश्य भारतीय विरासत के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाकर औपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता को समृद्ध करना और युवाओं को उसमें निहित मूल्यों को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करना है।