-राजनीतिक रणनीतियों का शिकार बन कठपुतली की तरह नाच रहे उत्तराखंड के युवा
-युवाओं को चाहिए कि वे अपने आप को आत्मनिर्भर बनाएं एवं अपने कार्यकुशलता के ऊपर ध्यान देते हुए उद्यमिता की ओर आगे बढ़े
हाल के दिनों में जो युवाओं का जनसैलाब देहरादून में देखा गया वह उत्तराखंड आंदोलन की याद को ताजा कर गई । इस तरह से युवाओं का जमावड़ा एवं जनसैलाब उत्तराखंड के गठन के बाद पहली बार देखा गया है। इस जनसैलाब में पहाड़ के दूरदराज से आए हुए युवाओं ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया एवं अपनी बात मनवाने के लिए उनमें से कुछ युवाओं ने ईट-पत्थर भी उठा लिए एवं उपद्रव भी किया। लोकतांत्रिक देश में प्रदर्शन करना एवं अपनी बातों को सरकार के समक्ष रखना मौलिक अधिकार माना गया है परंतु यह अधिकार तब तक ही जायज कहलाता है जब तक आप किसी हिंसा का सहारा ना लें एवं आपके इस प्रदर्शन से किसी भी तरह का नुकसान ना हो चाहे वह मानवीय नुकसान हो या फिर किसी संपत्ति का नुकसान। वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड के युवाओं के लिए अनगिनत ऐसे मुद्दे हैं जिसमें वे अपना प्रतिभाग सुनिश्चित कर जन जागरूकता ला सकते हैं।
इस तरह से युवाओं को एक साथ इकट्ठा होना एवं कुछ राजनीतिक पार्टियों की रणनीतियों का शिकार होना युवाओं को शोभा नहीं देता, उन्हें समझना चाहिए कि वे किस उद्देश्य से अपना प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या उनकी मांगे जो सरकार से है वो जन हित के लिए है या फिर वे सभी युवा किसी राजनीतिक दल के रणनीति का शिकार हो रहे हैं। भारत में सियासत बहुत अनोखे ढंग से की जाती है अगर कोई पार्टी अपनी बात सरकार से मनवाना चाहे एवं सरकार को गिराना चाहे तो वह उस पार्टी के विरोधी से हाथ मिला लेता है या फिर वे उन लोगों का समर्थन प्राप्त करता है जो वर्तमान में सरकार चला रही है। यही हाल उत्तराखंड में अभी जो प्रदर्शन चल रहा है युवाओं और बेरोजगारी को लेकर उसमें भी देखा गया है। सरकार विरोधी जो भी राजनीतिक दल है वह किसी भी तरह से सरकार को स्थिर होने नहीं देना चाहती और इसी के चलते राजनीतिक पार्टिया भांति भांति के हथकंडे अपनाते हैं और सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करते हैं। युवाओं को समझना चाहिए कि उनका जो उद्देश्य है वह सरकार तक अपनी बातें पहुंचाना है, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, पलायन एवं अन्य नीतियों को सुधारना है जो राज्य के हित में है। परंतु यह देखा गया है कि वर्तमान में युवाओं को अन्य राजनीतिक दलों द्वारा गुमराह किया जाता है एवं युवाओं के कंधे पर बंदूक रखकर चलाई जा रही है जिससे सरकार के साथ-साथ जनता में भी आक्रोश उत्पन्न हो रहा है। इस तरह के रणनीतियों से राजनीतिक दल सिर्फ अपनी राजनीतिक तुष्टी कर सकते हैं परंतु इससे राज्य हित में कोई कार्य नहीं हो सकता।
आज के इस वैश्विक युग में युवाओं को चाहिए कि वे अपने आप को आत्मनिर्भर बनाएं एवं अपने कार्यकुशलता के ऊपर ध्यान देते हुए उद्यमिता की ओर आगे बढ़े। हो सके तो लोगों को रोजगार देने लायक बने ना कि बेरोजगारी के इस भीड़ में सिर्फ आलोचना करते रहें। युवाओं में स्टार्टअप, एंटरप्रेन्योरशिप की कमी देखी जा रही है वे सब घिसे-पिटे तरीकों से सरकारी नौकरी एवं अन्य रोजगार को ढूंढने में लगे हैं अगर युवा अपनी ऊर्जा स्टार्टअप इंटरप्रेन्योर एवं अन्य दिशा में लगा सकता हैं तो उनको किसी से रोजगार मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर हमारे युवा आत्मनिर्भरता कि दिशा में आगे बढे़गें तो उत्तराखंड अपने आप विकास की ओर चल पड़ेगा। जन आंदोलन एवं प्रदर्शन हमारे लिए आवश्यक है और समाज को कई बार इन आंदोलनो से नई दिशा मिली है और बदलाव भी हुए हैं परंतु यह वक्त हमें ऐसे मुद्दों पर बर्बाद नहीं करना चाहिए जो राजनीति से प्रेरित हो, यद्यपि हमें अपनी पूर्ण ऊर्जाओ का इस्तेमाल कर राज्य को विकास की ओर ले जाना चाहिए।
लेखक के बारे में
डॉ दिव्या नेगी घई पेशे से एक शिक्षाविद, लेखिका और युवा सामाज कार्यकर्ता हैं। वे एक दशक से अधिक समय से स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ा रही हैं और अपने एनजीओ यूथ रॉक्स फाउंडेशन के माध्यम से युवाओं के लिए काम भी करती हैं। वे स्वावलंबी भारत अभियान की प्रांत महिला सह समन्वयक भी हैं।