उत्तराखंड के बुग्याल ताल की वस्तु स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करे सरकार-भक्तवत्सल – मुकुंद कृष्ण दास (मनोज ध्यानी)

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देहरादून-   आरटीआई लोक सेवा द्वारा सन् 2009 में संकल्पित ‘वृक्षाबंधन अभियान के तहत हमारे भ्रमण का एक पहाव बेनीताल भी रहा। बेनीताल एक खूबसूरत बुग्याल और ताल दोनों का सम्मिश्रण है। व यह उत्तराखंड हिमालय की अनुपम प्राकृतिक धरोहर है।
*”भूवैज्ञानिकों का कथन है कि बेनीताल के नीचे एक विशाल Acquifier है। अत: बेनीताल का संवर्द्धित भू-जल उस क्षेत्र के अनेकों गांव के लिए प्रमुख व एकमात्र जल ग्रोत भी है।”*
बेनीताल का बुग्याल/ताल चंडियाल ग्राम पंचायत क्षेत्र में आता है व बेनीताल से सटा गांव रंडोली गांव है। इस इलाके के लोगों के मवेशी पीढ़ियों से बैनीताल बुग्याल पर ही आश्रित रहते आए हैं। अत: बेनीताल बुग्याल वस्तुतः उनके हक हकूक का क्षेत्राधिकार भी है। काफी समय से हमारे संज्ञान में यह बात आ रही थी कि बेनीतल में जल सूख रहा है। इसका कारण क्या हो सकता है, यह जानने व अपनी ओर से हम राज्य एवम राष्ट्रीय सरकार को इसके revival हेतु क्या सुझाव प्रदान कर सकते हैं के प्रयोजन हेतु हम इस यात्रा पर बेनीताल पहुंचे। आरटीआई लोक सेवा द्वारा संकल्पित व संचालित ‘वृक्षाबंधन अभियान के बेनीताल भ्रमण पर हमने वहां पर कुछ ऐसा देखा जो सभी के होश उड़ाने वाला था।
*”बेनीताल में सरकारी सड़क जो कि public property है को खोद दिया गया है। खोदा गया क्षेत्र बुग्याल से प्रारम्भ होते हुए सड़क से होते हुए आगे फिर बुग्याल पर खुदा हुआ है व उसकी चौड़ाई लगभग तीन फीट और गहराई भी तीन फीट के आसपास होगी। और वहाँ पर नाला जैसा बना दिया गया है। खोदी गई सड़क के ठीक बाई ओर हमें दो बोर्ड लगे मिले। एक बोर्ड में बुग्याल क्षेत्र में शराब आदि पीना वर्जित करने का संदेश लिखा गया है – जो कि स्वागतजन्य है। परंतु दूसरे बोर्ड में बेनीताल एस्टेट (Benital Estate) बताते हुए उसपर निजी संपत्ति का दावा होना ठोक कर प्राइवेट प्रोपर्टी Private property) लिख दिया गया है। दावा करने वाले व्यक्ति का नाम बोर्ड पर राजीव सरीन लिखा हुआ था। हमें बोर्ड पर कोई भी नम्बर आदि नहीं लिखा दिखा व ना ही उसमें किसी भी न्यायलय द्वारा किसी भी आदेश के द्वारा संदर्भित सूचना प्रदत्त की गई थी।”*
     हमने वहां का विडियों उतारा व खोदी गई सड़क के फोटोग्राफ भी उतारे। पश्चात हम बेनीवाल बुग्याल व ताल तक गए। हमने अपने परियोजना अनुसार ताल का बारीक अध्ययन किया तो हमें कुछ-कुछ ऐसा आभास हुआ कि बेनीताल के जल को deliberatelyy सुखाया सा जा रहा है। उसके जल की निकासी के रास्ते नियोजित से किए गए हैं। ल
   वहां पर हमारी भेंट एक चरवाहा से भी हुई जिसका कहना था कि वहां आसपास के ईलाको की भैंसे चरती आ रही हैं। चरवाहा विडियो पर आने से डर रहा था अतः हमने फौरी तौर पर उससे जानकारी प्राप्त करनी चाही तो उसने बताया कि बेनीताल में दावा करने वाली पार्टी ने बकायदा रिहायश बनाई हुई है व वहां पर बकायदा मैनेजर व स्टाफ नियुक्ति किए हुए हैं। हमारे यह पूछने पर कि यह जमीन तो ग्राम पंचायत अथवा वन विभाग की होनी चाहिए थी पर वह व्यक्ति असहज हो गया। हमने भी उससे कुछ और सवाल नहीं किए बस फौरी तौर पर यह पूछताछ की कि सामने कौन सा गांव है, क्या-क्या फसल आदि उपजती है। सरकारी सड़क किसने खोद व निजी प्रॉपर्टी का बोर्ड किसने लगाया है आदि आदि। कुछ के उसने हमें जवाब दिए और कुछ के नहीं। मामले में संदिग्धता और गंभीरता को देखते हुए मैंने वहां पर अपने मोबाइल के कैमरे से एक विडियो शूट किया, जिसे बाद में सोशल या साइट फेसबुक पर अपनी बाल पोस्ट से अपलोड किया और जिसमें जताई चिन्ता को पूरे प्रदेश के नागरिक स्वयं अपनी चिंता बता रहे हैं व भयंकर रूप में आकोशित भी हैं। आते हुए मार्ग में हमने बेनीताल के श्री मगन सिंह जी से भेंट की। उन्होंने बताया कि वह वर्ष में एक बार बुग्याल क्षेत्र के प्रारम्भ होने से पूर्व के स्थान पर जहां कि शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी का जनस्मारक मौजूद है, शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी को श्रद्धांजलि स्वरुप बेनीताल में एक छोटा सी कौथिग का आयोजन करते आए हैं। परंतु पिछले कुछ समय से उस क्षेत्र में नियुक्त एसडीएम, बुग्याल में कब्जाधरी /कब्जाधारी के मैनेजर की शिकायत करने पर सभी लोगों को खदेड़ देते हैं। कुल मिलाकर क्षेत्रिय ग्रामीण अपने ही क्षेत्र में बुग्याल व ताल में जाने से महरूम कर दिए गए हैं। श्री मगन सिंह बताया कि बेनीताल से संबंधित अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज बाबामोहन उत्तराखंडी के पास हुआ करते थे जो उन्हें उनका आमरण अनशन तुड़वाने हेतु उठाया गया था तब के समय से ही गायब हो गए। विदित रहे कि बाबा मोहन उत्तराखंडी उत्तराखंड प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनवाने को लेकर बेनीताल में आमरण अनशान पर बैठे थे।
आज कब्जा प्रकरण पर सामने आ रहे तथ्यों के आधार पर हमारा यह गहरा अभिमत है कि बाबा मोहन उत्तराखंडी का बेनीताल में राजधानी गैरसैण हेतु आमरण अनशन गैरसैण में ना होकर बेनीताल में क्यूँ किया गया था। शायद वह बेनीताल पर बाहरी लोगों के कब्जा किए जाने के मुद्दे को भी प्रदेश व देश की जनता के सामने लाना चाहते थे व बेनीताल को स्थानीय ग्रामीणों के हक-हकक प्रदत्त करवाने हेत उसे बाहरी कब्जा से मुक्त कराना चाहते थे। हमारे पास आ रही जानकारियों से हमें ज्ञात हुआ है कि बाहरी तत्वों का दावा बेनीताल के आसपास के जंगलों पर पूरे 1600 एकड़ पर है जिसमें कई ग्राम सभाएं भी आती है व जहाँ पर सघन वन भूमि है। और यह विषय भारत की सर्वोच्च न्यायलय को चार सदस्यीय पीठ के समक्ष भी पहुंचा है।
*”सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष 1600 एकड़ भूमि पर किए गए दावा पीटशन (petition) को हम विधिक ज्ञाताओं को दिखा रहे हैं। परंतु जो एक बात हमने गौर की है उसमें ऐसा प्रतीत हो रहा है के सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष पहुंचे पीटिशन में बेनीताल को कर्णप्रयाग जनपद में मात्र एक भूमि के तौर पर दिखाया गया है व ‘बेनीताल का बुग्याल व ताल होने के सत्य’ को छुपा सा दिया गया पीटिशन में बेनीताल के आसपास सदियों से रहने वाले ग्रामीणों को ना तो पार्टी बनाया गया है व ना उनके हक-हकूक की बात रखी गई है। और सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि उत्तराखंड की अवाम आज तक पूरे प्रकरण में अंधकार में रखा गया है।”*
हमारे संज्ञान में अब यह तथ्य भी आए हैं कि बेनीताल के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी से काफी समय पूर्व स्वामी मनमथन भी बुग्याल व तालों को बचाने व क्षेत्रिय ग्रामीणों के हक-हकक हेतु लड़े थे व बाद में उनकी हत्या हो गई थी।
*”हमारा स्पष्ट अभिमत है कि बुग्याल व ताल राष्ट्र व राज्य की संपत्ति होते हैं व उनपर केवल व केवल सदियों से वहां जीवन यापन करने वाले ग्रामीणों का हक-हकूक आधार पर अधिकार होता है।”*
बेनीताल के बुग्याल व ताल को बचाना पर्यावरण व पारिस्थितिकी की दृष्टि से बेहद आवश्यक हो जाता है अन्यथा आने वाले समय में जल का भारी संकट प्रदेश के उन ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है। हम सरकार से इस मामले पर गंभीर हस्तक्षेप की मांग करते हैं व मांग कर रहे हैं कि सरकार बताए कि हमारे उत्तराखंड के बुग्याल व तालों को बचाने उनका संवर्द्धन करने व माफियाओं अथवा कब्जाधारियों से मुक्त करवाने हेतु क्या उपाय बना रही है।
*”आरटीआई लोक सेवा वृक्षाबंधन अभियान के तहत प्रदेश की जनता की ओर से बेनीताल प्रकरण प्रदेश के समस्त बुग्याल ताल के संरक्षण व संवर्द्धन पर सरकार द्वारा किए गए सभी उपायों पर अविलम्ब पत्र जारी कर वस्तुस्थिति को प्रदेश व देश की जनता के समक्ष प्रस्तुत करे। व बुग्याल तालों व जल स्रोत नष्ट करने वालों पर Absolute Liability Clause को निरूपित करते हुए ठोस कारवाई प्रारम्भ करे।”*
*वृक्षाबंधन अभियान आरटीआई लोक सेवा ट्रस्ट संगठन ने 5 जून 2009 को दून के नर्सिंग स्टाफ क्वार्टर से एक सूक्ष्म रचनाधर्मी अभियान जिसका नाम “वृक्षाबंधन अभियान” रखा गया था प्रारम्भ किया था।* इसका प्रयोजन है कि पेड़ों के रोपण व संरक्षण हेतु जनजागृती क सूत्र बांधकर उनको रक्षा का संकल्प लिया जाए। व प्रत्येक रक्षाबंधन को ‘रक्षाबंधन अभियान’ के रूप में मनाया जाए। वृक्षाबंधन अभियान की खासियत यह रही थी कि हमने इसे *word to mouth campaign* के रूप में आगे बढ़ाया। “वृक्षाबंधन अभियान” हमारी कल्पना से परे ऐसे मुकाम को आज चुका है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार ने अपने कार्यकाल में रक्षाबंधन की “वृक्षाबंधन अभियान” के रूप में पर मनाया था। पुढ्चेरी की राज्यपाल श्रीमती किरण बेदी ने रक्षाबंधन को “वृक्षाबंधन अभियान के रूप में मनाते हुए वृक्षों की राखियाँ बांधी। मुम्बई के आरा क्षेत्र के नागरिकों ने रेलवे यार्ड बनाने के नाम पर हजारों पेड़ों के छपान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे, उन्होंने भी ” वृक्षाबंधन अभियान” को ही अपनाया। “वृक्षाबंधन अभियान को आज भारत के अनेक प्रदेशों में विभिन्न नागरिक समूह व स्वयंसेवी संस्थाएं व कुछ राज्यों में वन विभाग भी ‘वृक्षाबंधन अभियान” को मनाने लगे हैं। हमें इस बात का गर्व है कि  ‘वृक्षाबंधन अभियान’ की बयार की बहाने में कामयाब हो रहे हैं। इसका सारा श्रेय उन लोगों को जाता है जिन्होंने इस अभियान की भावना की समझा है 2021 ने गर्मी के सारे रिकार्ड तोड़ डाले हैं। कनाडा जैसे विकसित राष्ट्र तक में 165 अधिक लोग गर्मी के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। ईरान जैसे ईंधन संपन्न देश में 50 प्रतिशत तक वर्षों में कमी दिख रही है। ब्राजिल के एमेजान के जंगल 2020 में धू-धू कर राख हो गए है। आस्ट्रेलिया जैसे देश में बुरा फाय से Ecology & Environment पर बड़ा प्रतिकूल असर पड़ा है। हमारे ही देश में हिमालयी राज्यों में जंगलों में भीषण अग्नि का प्रकोप दिखा है। आज दिल्ली समेत देश के अनेक शहर थाम के ताप के कारण त्राहिमाम है और नागरिक पीने के पानी की आपूर्ति पाने के लिए निढाल हुए पड़े हैं। भूमण्डलीय ताप से के अनेक उपायों में सर्वोत्तम उपाय हमारी समझ में वृक्षों का अधिक से अधिक रोपण करना व उनका रक्षण करना है। अभी तक वर्षा ऋतु ने अपने दर्शन नहीं दिए हैं। अत: मानसून पधारने से पूर्व हमने अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का प्रयास इस बार लॉकडाउन में ढील पाते ही किया है। हमने हाल ही में चमोली जिला के अनेक क्षेत्रों का भ्रमण किया है। नागरिकों के बीच वर्षा ऋतु में अधिक से अधिक वृक्ष रोपण व पेड़ों की रक्षा हेतु जागरुकता फैलाई है व कई स्वयं सेवी समूहों को फलदार वृक्ष जैसे कि अखरोट, काफल बांज, देवदार, आंवला आदि के वृक्ष पौध भी रोपण हेतु दिए हैं।
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