अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज द्वारा आयोजित पैनल चर्चा में पैनलिस्टों ने अपनी राय रखी

274

देहरादून  –   शिक्षा का अधिकार एक सार्वभौमिक अधिकार है, जो दिव्यांग लोगों सहित सभी को मिलना चाहिए। अगर दिव्यांगों को शिक्षा का अधिकार प्रदान किया जाए और सही तरीके से उनका पालन-पोषण किया जाए, तो अधिक से अधिक दिव्यांग समाज में भावी कर्णधार के रूप में उभर सकते हैं और समाज में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (आईडीपीडी) के अवसर पर एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक पैनल चर्चा में पैनलिस्टों ने यह बात कही।

एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज ऑफ इंडिया भारत का सबसे बड़ा बाल कल्याण के लिए समर्पित स्वयं सेवी संस्था है जो स्व-कार्यान्वयन के आधार पर संचालित है। इस संस्था ने हाल ही में एक पैनल चर्चा आयोजित की जिसका विषय था : “कोविडदृ19 के बाद की समावेशी, सुलभ और टिकाऊ दुनिया में दिव्यांग लोगों का नेतृत्व और भागीदारी।“ कोविड-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए, एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज ऑफ इंडिया के फेसबुक पेज के माध्यम से यह पैनल चर्चा ऑनलाइन आयोजित की गई थी।

इस पैनल चर्चा में भाग लेने वाले मुख्य पैनलिस्टों में भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के विकलांगता विभाग की ब्रांड एंबेसडर सुश्री इरा सिंघल, राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (एनआईईपीवीडी) और पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शारीरिक दिव्यांगजन संस्थान (पीडीयू-एनआईपीपीडी) के निदेशक डॉ हिमांगशु दास और भारत की स्पेशल एडुकेटर जयंती नारायण शामिल थे, जो वर्तमान में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थम्प्टन, यूके में एक विजिटिंग प्रोफेसर के पद पर हैं।

Also Read....  प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) साकार कर रही है घर का सपना

भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के विकलांगता विभाग की ब्रांड एंबेसडर सुश्री इरा सिंघल ने कहा, “लोग केवल अपनी अक्षमताओं को लेकर परेशान नहीं होते हैं, बल्कि वे अपनी क्षमताओं के सही इस्तेमाल न होने को लेकर भी परेशान रहते हैं, इसलिए हमें उनकी क्षमताओं पर ध्यान देने और यह याद रखने की आवश्यकता है कि विकलांगता से ऐसे लोगों को परिभाषित नहीं किया जा सकता है।ʺ सुश्री सिंघल ने खुद ही अपना उदाहरण पेश किया है और साबित किया है कि दिव्यांग लोगों के लिए कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है। सुश्री सिंघल प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा में शीर्ष पर पहुंचने वाली भारत की पहली दिव्यांग हैं। वह महिला और बाल विकास मंत्रालय और नीति आयोग की ब्रांड एंबेसडर भी हैं और भारतीय चुनाव आयोग के लिए सुगम चुनाव के लिए राष्ट्रीय पैनल में हैं।

सुश्री सिंघल ने दिव्यांग लोगों को याद दिलाया कि उनके पास प्रतिभा है और उन्हें अपनी अक्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपनी प्रतिभा को निखारने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, “याद रखें कि दुनिया आपको वैसे ही देखेगी जैसे आप खुद को देखते हैं। अगर आप अपनी क्षमता और काबिलियत को देखेंगे तो दुनिया यही देखेगी, लेकिन अगर आप अपनी अक्षमताओं को देखेंगे तो दुनिया आपको एक दिव्यांग के रूप में देखेगी।ʺ

Also Read....  नेस्‍ले इंडिया ने अपनी प्रमुख सामाजिक पहल ‘नेस्‍ले हेल्‍दी किड्स प्रोग्राम’ के 15 साल पूरे होने का जश्‍न मनाया

राष्ट्रीय बहु दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान (एनआईईपीएमडी, चेन्नई) के निदेशक डॉ. हिमांगशु दास ने कहा कि भारत में दिव्यांग लोगों की अधिक समावेशिता पर सरकार के ध्यान को देखते हुए कोविड के बाद की दुनिया में समाज के सभी वर्गों के दिव्यांग लोगों की अधिक नेतृत्व और भागीदारी देखने को मिलेगी। डॉ. दास ने कहा “दिव्यांग लोगों के अधिकार (आरपीडब्ल्युडी) अधिनियम, 2016 और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की केंद्र और राज्य सरकारों दोनों द्वारा गंभीरता से निगरानी की जा रही है। आरक्षण, नीतियों, योजनाओं और कानूनी उपायों के अधिक सक्रिय, दिव्यांगों के अनुकूल और समावेश आधारित होने के साथ, हम दिव्यांग लोगों की बहुत अधिक भागीदारी देखेंगे।”

डॉ. जयंती नारायण ने कहा “विशेष आवश्यकता वाले लोगों को भी शिक्षा का अधिकार है। उन तक पहुंचें और उन्हें शिक्षित करें! उन्हें महान लीडर के रूप में बढ़ते हुए और हमारे समाज के सदस्यों का योगदान करते हुए देखें।”

एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज ऑफ इंडिया के महासचिव श्री सुमंत कर ने कहा, “महामारी ने हमारे जीवन में विशेष रूप से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के जीवन में कहर ढाया है। ऐसे बच्चों को फिजियोथेरेपी और अन्य उपचारों की आवश्यकता होती है जिसके लिए हम बाहरी विशेषज्ञों को नियुक्त करते हैं। चूंकि, हमने बाहरी लोगों को विलेज जाने के लिए प्रतिबंधित कर दिया था, इसलिए हमने प्रोफेशनलों के द्वारा ऑनलाइन सत्रों की सहायता से बुनियादी चिकित्सीय उपचार करने के लिए तुरंत एसओएस मदर और सहकर्मियों को प्रशिक्षित किया। हमने विशेष आवश्यकता वाले अपने बच्चों को भी विभिन्न प्रतियोगिताओं में नामांकित किया है जिससे उन्हें अपने कौशल को बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम ऐसे बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता लाएं और एक बेहतर समाज के विकास और निर्माण के लिए हमें उन्हें इसमें शामिल करने की आवश्यकता है।“

Also Read....  मुख्यमंत्री धामी के निर्णायक नेतृत्व में देहरादून शहर में विद्युत लाइनों के भूमिगतिकरण कार्यों ने पकड़ी रफ्तार

अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (आईडीपीडी) की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव की सिफारिश के माध्यम से 1992 में की गई थी। समाज और विकास के सभी क्षेत्रों में दिव्यांग लोगों के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में दिव्यांग लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के विचार के साथ यह हर साल 3 दिसंबर को मनाया जाता है।

 

LEAVE A REPLY