देहरादून: एक वृद्ध पिता अपने पुत्र के हत्यारे को सजा दिलाने एवं न्याय पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है। अमेरिकी निवासी एनआरआई विजय वात्सल्य की संदिग्ध परिस्थिति में मौत का मामला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जा पहुंचा है। अमेरिकी दूतावास ने मृतक के पिता प्रमोद वात्सल्य को अपने लिखे हुए एक पत्र में कहा है कि यह बहुत ही दुख की बात है , दूतावास मृतक के परिवार के साथ हर संभव सहयोग करने का प्रयास करेगा। कैली सि लैंडरे, अमेरिकन सिटीजन सर्विस चीफ, न्यू दिल्ली, अमेरिकी दूतावास की ओर से एक पत्र जारी किया गया है जिसमें प्रमोद वात्सल्य जी को संबोधित करते हुए कहा गया है कि दूतावास यह सुनकर बहुत दुख है और इस दुख की घड़ी में दूतावास प्रमोद वात्सल्य के साथ खड़ा है। पत्र में लिखा गया है कि उत्तराखंड के संबंधित थानों में दर्ज किए जाने वाले प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक प्रति दूतावास को मिल चुका है, दूतावास संबंधित थाने को फोन कर संज्ञान लेगा कि इसकी जांच की क्या प्रगति हुई है और यह कब तक सुलझ पाएगा!
वहीं दूसरी ओर मृतक के पिता प्रमोद वात्सल्य ने कहा है कि हमें उत्तराखंड राज्य सरकार से अब कोई उम्मीद नहीं है हमने लगभग सभी दरवाजे को खटखटा दिया है जहां से हमें न्याय की उम्मीद दिख सकती थी परंतु अभी तक इसमें कोई कार्रवाई नहीं की गई है। प्रथम सूचना रिपोर्ट पर भी कोई खास कार्यवाही नहीं की गई है , वही अपराधी खुलेआम इधर-उधर घूम रहे है और वृद्ध व्यक्ति को धमकी भी दे रहे हैं। परंतु शासन-प्रशासन ना ही उससे कोई प्रश्न कर रहा है और ना ही उसे गिरफ्तार करने का प्रयास कर रहा है, मैं इस शासन प्रशासन की व्यवस्था से हताश -निराश हो चुका हूं। अब मेरी आखिरी उम्मीद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक पहुंचने का रह गया है और मैं यह कह रहा हूं कि आने वाले कुछ दिनों में मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी एवं माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी जी को गुहार लगाने जा रहे हैं। अब मुझे वहीं से कुछ उम्मीद नजर आ रही है, राज्य सरकार की जो भी प्रक्रिया है एवं जिस जिस ने जहां-जहां बोला मैं वह सब दरवाजे को खटखटा चुका हूं परंतु न्याय के लिए मुझे कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।
आलोक लाल पूर्व डीजीपी प्रमोद वात्सल्य जी को समर्थन करते हुए कहते हैं कि यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि एक 84 साल के वृद्ध को इस तरह से शासन-प्रशासन के चुंगल में फंसा कर इधर उधर घुमाया जाता है यह जिम्मेदारी इन्हीं शासन-प्रशासन की बनती है कि वे प्रदेश के लोगों को अच्छी पुलिसिंग मुहैया कराए साथ ही साथ अगर किसी को कोई परेशानी आती है तो यह शासन प्रशासन की ही जिम्मेदारी बनती है कि वह इसे गौर से देखें और उनके समस्याओं का समाधान करें परंतु उत्तराखंड के लिए दुर्भाग्य की बात है कि इस तरह की हरकतें कर एक वृद्ध व्यक्ति को परेशान किया जाता है। अगर किसी के साथ अन्याय हो रहा है तो उस अन्याय को साथ देने वाला व्यक्ति भी उसी अपराधी की श्रेणी में आता है जो जिसने अपराध किया है। शासन प्रशासन को चाहिए कि इस वृद्ध व्यक्ति के एफआईआर को संज्ञान में रखते हुए जांच प्रक्रिया को पूर्ण करें एवं वृद्ध व्यक्ति को न्याय दिलाने का कष्ट करें।
वहीं विजेंद्र पॉल पूर्व होम सेक्रेट्री कहते हैं कि सीनियर सिटीजन के लिए आजकल बहुत ही बुरा दौर चल रहा है ना उसकी बात सरकार सुन रही है ना शासन प्रशासन में बैठे लोगों को समझ में आ रहा है। जबकि आप देख सकते हैं कि पूर्व में रहे बड़े-बड़े अधिकारी ही अपने वृद्धावस्था में बहुत अधिक कष्टों का सामना कर रहे हैं। एकल परिवार के कंसेप्ट ने वृद्ध व्यक्ति को इधर उधर भटकने और मजबूरन वृद्धा आश्रम में रहने के लिए विवश एवं लाचार कर दिया है। प्रमोद वात्सल्य जी के साथ जो घटना घटी वह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और इस घटना की जांच होनी चाहिए, एक वृद्ध व्यक्ति को इस तरह से दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर नहीं करना चाहिए। विजय वात्सल्य की मृत्यु उत्तराखंड के लिए एक अभिशाप है जो व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवा देकर उत्तराखंड के मान सम्मान को चार चांद लगा रहा था उसी व्यक्ति को साजिश के तहत किसी ने हत्या कर दी यह एक वृद्ध पिता की गुहार है जिन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु की एफ आई आर रिपोर्ट दर्ज कराई है यह अब उत्तराखंड में बैठे शासन प्रशासन के लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि उसका निष्पक्ष जांच करें और जांच रिपोर्ट के अनुसार सभी को पता चले कि यह एक मृत्यु है या फिर एक गहन साजिश की तहत हत्या की गई है।
वहीं भारत के जाने-माने शिक्षाविद एवं वकील डॉ. सूरत सिंह बताते हैं कि मैंने अपने जीवन के ज्यादातर समय विदेशों में बिताया है मैंने अपनी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड एवं कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों से किया है परंतु मैंने हर जगह यह पाया है कि नागरिक सुरक्षा एवं नागरिकों को न्याय दिलाने का अधिकार वहां के शासन प्रशासन में बहुत ही साधारण बात होती है और यही बात किसी भी देश के नागरिकों को उस देश में सुरक्षित महसूस करवाती है परंतु विजय वात्सल्य की मौत एवं वृद्ध पिता को न्याय ना मिलना एवं न्याय में देरी होना बहुत ही दुख की बात है। परंतु हमें सराहना इस बात की करनी चाहिए कि प्रमोद वात्सल्य 84 साल के उम्र में भी एक वृद्ध योद्धा के मुताबिक डट कर खड़े हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड के शासन प्रशासन से हमें यही उम्मीद है कि वे इस मामले के तह तक जाएंगे और न्याय दिलाने में एक पीड़ित परिवार एवं वृद्ध पिता को मदद करेंगे।