देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल 2025 का 7वां संस्करण बाल दिवस पर उत्साह के साथ शुरू

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– उद्घाटन दिवस में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, रूपा पाई, शोभा थरूर श्रीनिवासन, जया किशोरी और ‘सितारे ज़मीन पर’ टीम सहित कई हस्तियां शामिल

देहरादून – दून इंटरनेशनल स्कूल में आज देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल (डीडीएलएफ) के 7वें संस्करण का शुभारंभ हुआ। इस वर्ष का महोत्सव कहानियों और विचारों का उत्सव मनाते हुए जिज्ञासा व संवाद को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आरंभ हुआ। बाल दिवस के विशेष अवसर पर शुरू हुए इस महोत्सव का विषय “वसुधैव कुटुंबकम – वॉइसेज़ ऑफ यूनिटी” है, जो विविध विचारों, अभिव्यक्तियों और संवादों के माध्यम से एकता की भावना का संदेश देती है।

कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथियों द्वारा पारंपरिक दीप प्रज्वलन से हुई। इसके बाद प्रख्यात लेखक रस्किन बॉन्ड द्वारा ऑनलाइन उद्घाटन संबोधन प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात रस्किन बॉन्ड लिटरेरी अवॉर्ड्स का वितरण किया गया। बडिंग राइटर्स श्रेणी में मायरा पारेख विजेता और ओजस्वी अग्रवाल उपविजेता रहे। प्रॉमिसिंग राइटर्स श्रेणी में अमिता बासु ने पुरस्कार जीता, जबकि हर्षित दीक्षित को कविता में पुरस्कार मिला और प्रतीक साखरे उपविजेता घोषित हुए।

“साउंड ऑफ वुमेन – फोक म्यूजिक ऑफ़ उत्तराखंड” सत्र में कुमाऊं की समृद्ध लोकसंस्कृति और महिलाओं की सशक्त आवाज़ों को खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया।

सबसे बहुप्रतीक्षित सत्रों में से एक था पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की छात्रों अवनीश सिंह चौहान और पलक तोमर के साथ विशेष बातचीत — “वी, द स्टूडेंट्स ऑफ इंडिया।” उन्होंने नेतृत्व, सीखने और भारत की लोकतांत्रिक भावना पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि कानून का क्षेत्र युवाओं को समाज में सार्थक योगदान देने का अवसर प्रदान करता है। उन्होंने यह भी कहा कि सच्चा नेतृत्व उदाहरण प्रस्तुत करके किया जाता है और असफलता को सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा मानना चाहिए।

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भारत की विविधता पर बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि विचारों, संस्कृतियों और मान्यताओं का संगम ही देश की शक्ति है। टेक्नोलॉजी पर बात करते हुए उन्होंने मानसिकता में बदलाव, डिजिटल विभाजन को पाटने और प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि तकनीकी प्रगति सबके लिए लाभकारी हो सके।

महोत्सव में “शिवानी – आयरन लेडी ऑफ द हिल्स अवॉर्ड” के तीसरे संस्करण के तहत इस वर्ष का पुरस्कार अनामिका को प्रदान किया गया। यह सम्मान जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, अदिति महेश्वरी गोयल, विजया लक्ष्मी जुगरन और फ्रंटियर ज्वेलर्स की संस्थापक सविता कपूर ने प्रदान किया।

“अपना अपना नॉर्मल – आवर लाइव्स, आवर स्टोरीज़” सत्र में ‘सितारे ज़मीन पर’ टीम—गुरपाल सिंह, दिव्य निधि शर्मा, मनुज शर्मा और आशीष पेंडसे—ने फिल्म, सीख और समावेशिता पर अपने अनुभव साझा किए। इस सत्र का संचालन फेस्टिवल डायरेक्टर सौम्या कुलश्रेष्ठा ने किया।

आशीष पेंडसे ने दर्शकों को अपना अपना ‘नॉर्मल’ खोजने और दूसरों को भी उनका नॉर्मल खोजने में मदद करने की प्रेरणा दी। गुरपाल सिंह ने कहा कि दस स्पेशल कलाकारों के साथ काम करना उनके जीवन का परिवर्तनकारी अनुभव रहा। दिव्य निधि शर्मा ने बताया कि इस फिल्म ने विकलांगता को लेकर उनकी समझ बदल दी और बच्चों की प्रतिबद्धता अद्भुत थी। मनुज शर्मा ने कहा कि शुरुआत में उन्हें स्पेशल कलाकारों को अभिनय सिखाने पर संदेह था, पर अंततः उन्हें उनकी मासूमियत और सहजता से ख़ुद सीखने का मौक़ा मिला।

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आध्यात्मिक गुरु जया किशोरी ने “लिविंग द ‘इट्स ओके’ पाथ” सत्र में रोजमर्रा की जिंदगी में सहजता, अनुग्रह और संतुलन अपनाने के प्रेरणादायक विचार साझा किए।

“द सर्कल ऑफ बिलॉन्गिंग – करेज, केयर एंड कम्पैशन” सत्र में जो चोपड़ा, सुचित्रा शेनॉय और एबी पाठक ने, शुभी मेहता द्वारा संचालित चर्चा में, इस बात पर चर्चा की कि समुदाय कैसे हर शिक्षार्थी के लिए संवेदनशील और सशक्त वातावरण बना सकते हैं। जो चोपड़ा ने अपनी पुत्री मॉय मॉय के साथ अपनी यात्रा साझा करते हुए कहा कि एक दिव्यांग बच्चा भी उतना ही मानव है जितना कोई और—बस उसे समझने की जरूरत है, न कि लेबल की। सुचित्रा शेनॉय ने मानव आत्मा की दृढ़ता और देखभाल की शक्ति पर प्रकाश डाला। एबी पाठक ने कहा कि समावेशन की शुरुआत एक-दूसरे को समझने से होती है और बच्चों को केवल “स्पेशल” कहने के बजाय उन्हें विशेष अधिकार मिलने चाहिए।

“अबव राइम, बियॉन्ड रीजन” सत्र में रूपा पाई, शोभा थरूर श्रीनिवासन और वैशाली श्रॉफ ने बच्चों के लिए रचनात्मक और सार्थक साहित्य रचने की प्रक्रिया पर विचार साझा किए। इसके बाद “जस्टिस, डेमोक्रेसी एंड द आइडिया ऑफ इंडिया” सत्र में राकेश नांगिया ने जस्टिस चंद्रचूड़ से उनकी पुस्तक व्हाई द कॉन्स्टिटूशन मैटर्स पर बातचीत की, जिसमें संवैधानिक मूल्यों, नागरिकता और भारत की लोकतांत्रिक यात्रा पर गहन चर्चा हुई।

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“पनिक्कर’स इंडिया – फ्रॉम प्रिन्सली स्टेट्स टू ग्लोबल सीज़” सत्र में नारायणी बासु और रेणुका नाहर ने इतिहासकार और राजनयिक के.एम.पनिक्कर के जीवन और विरासत पर प्रकाश डाला। दिन के दौरान “कहानी जंक्शन – गेटिंग क्रिएटिव विद डीपीडी” (दिव्य प्रकाश दुबे) और “बियॉन्ड द रेसिपी – कल्चर, आइडेंटिटी एंड इनहेरिटेंस” (सुवीर सरन) जैसे रोचक सत्रों का आयोजन भी हुआ, जिनमें कहानियों और खान-पान के माध्यम से संस्कृति और पहचान के विविध पहलुओं पर चर्चा की गई।

शाम को आद्यम स्टेज पर मनीष सक्सेना की प्रस्तुति “इकत – द फैब्रिक ऑफ वननेस” ने वस्त्रों के माध्यम से उत्सव के थीम को खूबसूरती से जीवंत किया। कार्यक्रम के पहले दिन का समापन अनन्या गौर की मोहक ग़ज़ल प्रस्तुति के साथ हुआ।

डीडीएलएफ के संस्थापक समरांत विरमानी ने कहा कि बाल दिवस पर देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत होना महोत्सव की जिज्ञासा, रचनात्मकता और सीखने की भावना को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि पहले दिन के सत्रों ने विविध आवाज़ों को एक मंच पर लाकर दून घाटी के साहित्य प्रेम को और मजबूत किया।

दून इंटरनेशनल स्कूल के निदेशक एच.एस. मान ने कहा कि एक बार फिर इस महोत्सव की मेजबानी करना सम्मान की बात है और बाल दिवस पर इसका आरंभ होना इसे और अधिक सार्थक बनाता है।

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