जैव विविधता: पृथ्वी को हरा-भरा बनाने का छोटा सा एक प्रयास भी व्यापक परिवर्तन का सर्जन कर सकता है- दाजी

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परिचय: हमारी गतिविधियों का हमारे चारों ओर मौजूद जीवन के कोमल आवरणों पर, कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है। आइए ! इस पर विचार करने के लिए कुछ समय निकालें। भविष्य की पीढ़ियों के लिए पृथ्वी के संरक्षण हेतु जैव विविधता के बारे में जागरूक करने के यद्यपि सभी वैश्विक प्रयास सराहनीय हैं परन्तु अंतर लाने की वास्तविक कुंजी, व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले छोटे-छोटे व्यावहारिक कार्य हैं। वनों की कटाई, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, निवास स्थलों का विनाश, जलवायु परिवर्तन, स्वदेशी प्रजातियों के प्रति आक्रामक विदेशी प्रजातियों का आगमन , प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, कृषि कार्यों में कीटनाशकों और हानिकारक रसायनों का उपयोग, कृषि भूमि का शहरी क्षेत्रों में रूपांतरण, अवैध वन्य-जीव व्यापार और इन सबसे इतर आनुवंशिक प्रदूषण इत्यादि वह कारक हैं जिनसे जैव विविधता नष्ट हो रही है। सामान्य सोच यह है कि सामान्य सा जीवन जीने वाले हम जैसे आम लोग इस सबका मुकाबला कैसे कर सकते हैं? लेकिन मैं एक सरल रहस्य उजागर करना चाहता हूं कि वास्तविक जैव विविधता तभी पनप पाएगी जब हम में से प्रत्येक छोटे-छोटे सार्थक प्रयास करने की कोशिश करेगा। मानव जाति के सामूहिक रूप से इस प्रकार कार्य करने से पृथ्वी की जैव विविधता के संरक्षण की गुंजाइश बहुत अधिक बढ़ जाती है। आइए! मैं समझाता हूं कैसे!

क्या मेरा प्रयास मायने रखेगा?

कुछ लोग वनों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों में तेजी से आने वाली कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी विशाल चुनौतियों के सामने अपने छोटे प्रयासों के महत्व पर सवाल उठा सकते हैं। वह कह सकते हैं कि सड़कों पर चारों ओर प्लास्टिक का कचर फैला हो तो ऐसे में मेरे एक चॉकलेट के रैपर को कूड़ेदान फेंकने से क्या होगा? क्या मेरे आंगन में लगा एक पौधा वातावरण को कार्बन-मुक्त कर देगा? वास्तव यह मजाक ही लगता है। है न ! लेकिन नहीं! इसमें कोई संदेह नहीं है कि अधिक लाभ पाने के लिए बड़े निगम और उद्योग खतरनाक गति से पृथ्वी के विनाश में विशेष भूमिका निभा रहे हैं। जीवाश्म ईंधन, कोयले और तेल की कमी ने पृथ्वी पर मंडराते पर्यावरण के संकट को और बढ़ा दिया है। समुंद्रतटीय शहर पहले से ही डूबने के खतरे का सामना कर रहे हैं और ओजोन की परत भी लगातार पतली होती जा रही है। ऐसी दुष्कर बाधाओं के बीच, वनस्पतियों और जीवों को बचाने के अपने प्रयासों को महत्वहीन और निरर्थक महसूस करना स्वाभाविक ही है। मैं आपकी भावनाओं का खंडन नहीं करता। मैं आपके साथ हूँ हालाँकि इतिहास ने हमें सिखाया है कि किसी भी बड़ी चुनौती को जीतने की शुरुआत सहृदय और नेक इरादे वाले व्यक्ति के छोटे प्रयासों से ही होती है। इन प्रयासों के अभाव में सफलता असंभव है।

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आंतरिक और बाहरी दुनिया का शुद्धिकरण…

वर्तमान में हम जिसका सामना कर रहे हैं वह सिर्फ पर्यावरण या अर्थव्यवस्था में सुधार की ही समस्या नहीं है बल्कि नैतिकता, आंतरिक और आध्यात्मिक विश्वास संबंधित चुनौतियों पर भी गहन चिंतन की आवश्यकता हैं। हमारी पीढ़ी के सामने आने वाले संकटों का समाधान केवल वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी आविष्कारों के माध्यम से नहीं किया जा सकता है। वास्तविक समाधान के लिए आवश्यक है कि आध्यात्मिक सिद्धांतों की गहराई में निहित मानवीय मूल्यों को पुनर्जीवित कर उन्हें वर्तमान जीवन के अनुरूप बनाकर अपनाया जाए। पृथ्वी को प्रभावित करने वाले बाहरी प्रदूषण को साफ करने के लिए हमें सबसे पहले उस मानसिक प्रदूषण को साफ करना होगा जो हमारे सामूहिक विवेक पर छा गया है। इसमें हृदय-आधारित ध्यान प्रणाली हमारी मदद कर सकती है। दिल और दिमाग की शुद्धि से ही अंततः नदियों, मिट्टी और हवा की शुद्धि होगी और स्थायी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होगा। आप पूछ सकते हैं कि कैसे!

परोपकार से निहित शुद्ध हृदय वाला कोई भी व्यक्ति नदियों में जहरीला कचरा डालने से पहले दो बार सोचेगा जिनका पानी कृषि भूमि को सिंचित करता है। ऐसे परोपकारी हृदय में लोभ, लालच और अधिग्रहण की प्रवृत्तियों को हटाकर उसे सामुदायिक निर्माण कार्यों, अपने साथियों के प्रति करुणा और शांतिपूर्ण दुनिया की आकांक्षा से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। क्या ऐसा नहीं है?

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हमें आश्चर्य हो सकता है कि क्या ऐसे विशाल कार्यों की शुरुआत हमारे छोटे व्यक्तिगत प्रयासों से करना कितना सार्थक है? हालाँकि यह किसी कार्यवाही का आह्वान की अपेक्षा यह पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाने और जैव विविधता को पोषित करने की दिशा में, छोटे-छोटे लेकिन सार्थक कदम उठाने का आवश्यकीय निवेदन है। हममें से प्रत्येक वह करे जो कि हम कर सकते हैं। प्रकृति स्वयमेव प्रत्युत्तर देगी। मेरे आध्यात्मिक मार्गदर्शक बाबूजी महाराज कहा करते थे, “तुम ईश्वर की ओर एक कदम बढ़ाओगे तो ईश्वर तुम्हारी ओर चार कदम बढ़ आएगा।”

 

 

दुनिया को बचाने के लिए प्रयासशील रहें ..

एक पुरानी कहानी है कि स्वर्ग में देवताओं ने पृथ्वी को पांच साल तक अकाल और सूखा पड़ने का श्राप दे दिया। फिर भी एक बूढ़ा किसान खेत जोतने लगा। तब इंद्र देव ने उससे पूछा, “क्या आप नहीं जानते कि देवताओं की सभा ने फैसला किया है कि आपके ग्रह में पांच साल तक बरसात नहीं होगी? आपके पास यहां फसल की सिंचाई के लिए कोई नदी या कुआं भी नहीं है तो आप अपने खेत जुताई क्यों कर रहे हैं?” किसान ने उत्तर दिया, ” संभव है कि मैं इन पांच वर्षों में खेत की जुताई करने का कौशल भूल जाऊं। पांच साल बाद मुझे याद ही ना रहे की जुताई कैसे करनी है इसलिए अपने कौशल और याददाश्त को बनाए रखने के लिए मैं अभ्यास कर रहा हूं।” कुछ दिनों के बाद इंद्र देव ने सोचा, “मैं भी पृथ्वी पर वर्षा करने की कला भूल सकता हूँ इसलिए मुझे भी कभी-कभी थोड़ा अभ्यास कर लेने दो।” इंद्रदेव के बारिश शुरू करते ही सूखा दूर हो गया। धीरे-धीरे ही सही परंतु सब कुछ सामान्य हो गया। इस प्रकार एक सकारात्मक दृष्टिकोण चमत्कार पैदा कर सकता है लेकिन नकारात्मक दृष्टिकोण उन्हें नष्ट भी कर सकता है। इस कहानी में एक सार्थक कदम ने पूरी दुनिया को बचा लिया।

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प्राचीन मूल अमेरिकी ज्ञान…

आप सभी जानते हैं कि अतीत के इस ज्ञान का श्रेय बहुत लोग अमेरिका के आदिवासियों को देते हैं। उनका कहना हैं कि हममें से प्रत्येक के अंदर दो भेड़िये हैं। एक है हमारा सकारात्मक रवैया और दूसरा हमारा नकारात्मक रवैया। इनमें से कौन जीतेगा? स्वाभाविक रूप से वह जिसे हम पोषित करेंगे। जिसे हम पोषण नहीं देंगे वह खुद ही हार जाएगा। अब यह हमारे हाथ में है कि हम किसे जिताएं और किसे हरा दें।

तो आगे बढ़ें और आज ही अपने आंगन में एक पेड़ लगाएं, चॉकलेट के रैपर को कूड़ेदान में डालें, पानी बचाएं, बिजली बचाएं और छोटे से छोटा हर वह काम करें जो करना अनिवार्य है। हममें से हर कोई छोटा सा ही सही लेकिन अपना अमूल्य योगदान दे तो वह पृथ्वी को बचाने के लिए असाधारण सामूहिक प्रयास बन जाएगा। जिस भेड़िये को आप पोषण देते हैं वह जीत जाएगा और आप सही भेड़िए को खिलाएं। भले ही योगदान कितना ही छोटा क्यों न हों परन्तु सामूहिक रूप से किए गए सार्थक व्यावहारिक कार्यों के माध्यम से हम पृथ्वी के पर्यावरण में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।

प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग की तरह उन्होंने कहा, “यह मनुष्य के लिए बेशक यह एक छोटा कदम है परंतु मानव जाति के लिए बहुत बड़ा परिवर्तन है।” निश्चित रूप से सही मनोदशा से किया गया आपका छोटा सा कार्य भी धरती माता के वातावरण पर व्यापक प्रभाव डालेगा जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए इसका यथेष्ट और सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व सुनिश्चित होगा। .

हार्टफुलनेस मेडिटेशन के प्रसिद्ध मार्गदर्शक कमलेश डी. पटेल हैं जिन्हें प्यार से दाजी कहा जाता है। इनका जन्म के गुजरात (भारत) में हुआ है। वह वैज्ञानिक तरीके से भावनात्मक आत्म-नियमन और चेतना को उच्चतम संभव स्तर तक विकसित करने के यौगिक आध्यात्मिक अभ्यास का सार प्रस्तुत करते हैं। अधिक जानकारी से www.heartfullence.org. से प्राप्त करें।

 

 

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