ध्यान एवं आंतरिक स्वच्छता: संपूर्णता एवं आनंद का मार्ग : पद्म भूषण विभूषित दाजी

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-आध्यात्मिक मार्गदर्शक – हार्टफुलनेस मेडिटेशन वर्ल्डवाइड –  रामचंद्र मिशन

डब्ल्यूएचओ स्वास्थ्य को केवल बीमारी की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि समग्र कल्याण के रूप में परिभाषित करता है। हिप्पोक्रेट्स साइंस ऑफ मेडिसिन ने चिकित्सा का लक्ष्य रोगियों की परेशानी को पूरी तरह से दूर करने के रूप में निर्धारित किया है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, रोबोटिक्स और डेटा विश्लेषण जैसी प्रौद्योगिकी के एकीकरण के कारण फार्माकोलॉजी, जीनोमिक्स तथा अभिनव स्वास्थ्य देखभाल पद्धतियों में आये बदलाव में तेजी से हो रही प्रगति उल्लेखनीय है। इंस्ट्रूमेंटेशन के माध्यम से उन्नत नैदानिक उपकरणों का समावेश भी असाधारण है। फिर भी, क्या यह व्यापक दृष्टिकोण समग्र कल्याण और स्वास्थ्य को बढ़ाने का एकमात्र मार्ग है?

प्राचीन चिकित्सा ज्ञान:
आज जब आधुनिक चिकित्सा प्रणाली एंटीबायोटिक्स, टीकाकरण, शल्य चिकित्सा तकनीक और दवाओं के क्षेत्र में अमूल्य प्रगति कर रही है, पूर्व और पश्चिम से उत्पन्न वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों का एक पेचीदा क्षेत्र भी मौजूद है। भारत के साथ ही मिस्र और चीन जैसी प्राचीन सभ्यताएँ गहरे रहस्य रखती हैं जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए काफी हद तक अनजाने हैं। भारत में आयुर्वेद और सिद्ध जैसी कुछ प्रणालियाँ अपने विकास में हजारों साल पुरानी हैं जबकि एलोपैथिक चिकित्सा कुछ ही शताब्दियों पुरानी है।
आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा और अन्य प्राचीन पद्धतियों के अंतर्गत ऐसी अवधारणाएँ हमारे सामने आती हैं जो आम आदमी और चिकित्सा शोधकर्ताओं दोनों को समान रूप से भ्रमित कर सकती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सकों की एक अद्भुत अंतर्दृष्टि के अनुसार औषधीय पौधों की कटाई और उनकी प्रोसेसिंग दिन के किस समय की जाए, इस बात का गहन प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए तुलसी के पत्तों को लें, जिन्हें सुबह तोड़ने पर अमृत या दवा के समान माना जाता है, लेकिन रात में तोड़ने पर वे संभावित रूप से विषाक्त हो जाती हैं, यह घटना आइसोमेरिज्म में निहित है। इसी तरह हृदय रोगों के उपचार में उपयोग किए जाने वाले कुछ पौधे दिन के गलत समय पर कटाई होने पर विरोधी प्रभाव पैदा कर सकते हैं। ये प्राचीन चिकित्सा परंपराओं की रहस्यमय गहराई हैं जो अनावरण की प्रतीक्षा कर रही हैं।

सामंजस्य और उपचार:
सच्चा स्वास्थ्य भौतिक शरीर से परे शरीर, मन और आत्मा के सामंजस्य को शामिल करने में है। स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने के लिए मानव अस्तित्व के जटिल ताने-बाने में बाहरी और आंतरिक दोनों पहलू सामंजस्य में होने चाहिए। हमारे आंतरिक अस्तित्व की कई परतों का पता लगाया जाना बाकी है।
इस प्रकार उपचार भौतिक आयाम को पार करते हुए हमारे मन और भावनाओं की गहराइयों में पहुँचता है। प्राचीन लैटिन कहावत “मेंस साना इन कॉरपोर सानो” हमें याद दिलाती है कि एक स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर के भीतर रहता है। हमारे भावनात्मक हृदयों पर पड़े घावों के निशान सुधारना हमारे शरीर के उपचार की तुलना में अधिक चुनौती पूर्ण हो सकता है। ये भावनात्मक घाव गलतफहमी, स्वार्थ, प्रेम एवं करुणा की कमी और ऐसे ही अन्य कारणों से उत्पन्न होते हैं। उन्हें ठीक करने के लिए हमें सही तरीके से सोचना, धीरज और करुणा के साथ सुनना, अपने भीतर सहानुभूति विकसित करना और एक पवित्र हृदय की क्षमता को पूरी तरह से खोल देना, आना चाहिए। ध्यान और आध्यात्मिकता इस यात्रा में अपरिहार्य साथी हैं।
आज, और आने वाले भविष्य में भी अच्छाई और शक्ति से भरे पवित्र हृदय वाला व्यक्ति ही स्वास्थ्य और सामंजस्य के उच्चतम स्तर का आनंद ले सकता है जो न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य सुनिश्चित करता है, बल्कि मानवता और हमारी इस अनमोल दुनिया की उन्नति को भी सुनिश्चित करता है, क्योंकि उपचार के लिए हमारी खोज व्यक्तिगत स्व से बहुत आगे तक फैली हुई है।

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हृदय की बुद्धिमत्ता और उपचार प्रक्रिया:
पॉल पियर्सल ने शारीरिक स्वास्थ्य पर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक हृदय के गहन प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए ‘द हार्ट्स कोड’ लिखा था। हृदय का प्रभाव प्रेम, क्षमा, उदारता और दया आदि के रूप में है जो हमारी चेतना का विस्तार करते हैं और स्वाभाविक रूप से स्वास्थ्य में वृद्धि करते हैं।

एक जीवनी शक्ति का पोषण या हमारा जीवित रहना हमारे अच्छे स्वास्थ्य की नींव है। जब यह शक्ति मानव शरीर से बाहर निकल जाती है तो सभी अंग कार्य करना बंद कर देते हैं। यहाँ तक कि बीमारियों, दुर्घटनाओं, चोटों, दर्द और तनाव के बीच भी हमारा अस्तित्व तब तक बना रहता है जब तक यह महत्वपूर्ण सार भीतर रहता है। वह चीज जो हमें जीवित रखती है, उसे विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है – रूह, आत्मन, सोल आदि। इसलिए जब हम अच्छे स्वास्थ्य या कल्याण के बारे में बात करते हैं तो हमें खुद से यह प्राथमिक प्रश्न पूछना होगा, ‘आत्मा के अच्छे स्वास्थ्य, विकास और कल्याण को कैसे सुनिश्चित किया जाए?’ ‘ या ‘उस आत्मा को प्रार्थना पूर्ण अनुग्रह की स्थिति में कैसे खुश रखा जाए और कैसे उसे जीवन देने वाली शक्ति का पोषण अच्छी तरह से दिया जाए?’

उपचार में कोष की खोज:

शारीरिक स्तर पर हम स्वास्थ्य को स्वस्थ आहार, व्यायाम, एक अच्छी जीवन शैली आदि के परिणाम के रूप में सोचते हैं। स्पंदन के स्तर पर एक गहन खोज मानव शरीर के भीतर की जटिल परतों को प्रकट करती है। ये परतें, जिन्हें कोष, शीथ (sheath), या परत के रूप में जाना जाता है, हमारे अस्तित्व का एक गहन आयाम प्रस्तुत करती हैं।
उपनिषदों में कोषों को जागरूकता की पाँच परतों के रूप में वर्णित किया गया है जो भौतिक शरीर से शुरू होती हैं और हमारी आत्मा या हमारे अंतरतम की सबसे गहरी परत, हमारे गहनतम स्व तक हैं। योग और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से हम एक रूपांतरणकारी यात्रा शुरू करते हैं। हम इन परतों का अनुभव करते हैं जिससे हम उन्हें उनके वास्तविक सार में समझ पाते हैं और अपने सच्चे आंतरिक स्व की खोज कर पाते हैं। पाँच कोष इस प्रकार हैं:
1. अन्नमय कोष (भोजन)- यह सबसे बाहरी कोष भौतिक शरीर के भरण-पोषण का ध्यान रखता है।
2. प्राणमय कोष (ऊर्जा)- यह कोष प्राण या जीवनी – शक्ति के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
3. मनोमय कोष – मनोमय वह कोष है जो हमें हमारे विचारों और भावनाओं के बारे में जागरूकता प्रदान करता है।
4. विज्ञानमय कोष (अंतर्ज्ञान) – यह कोष सहज रूप से गहरे स्तर से जुड़ा हुआ है जो आध्यात्मिक ज्ञान तक पहुँच प्रदान करता है।
5. आनंदमय कोष (आनंद) – यह सबसे गहरी परत है और शास्त्रों में इसका संदर्भ वास्तविक आंतरिक स्व के रूप में दिया गया है जो हमें आनन्द और प्रेम देता है।

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आत्मा – हमारा शाश्वत सार:
हमारे अस्तित्व की नींव कोषों के पार स्थित है: यह आत्मा या जीवनी शक्ति है जो हमें जीवित रखती है। जब यह मनुष्य को छोड़ देती है तो सभी शारीरिक कार्य समाप्त हो जाते हैं। बीमारियों, दुर्घटनाओं, चोटों और तनाव के बावजूद अस्तित्व तब तक बना रहता है जब तक यह जीवनी शक्ति भीतर रहती है। हम इस जीवन, अपनी आत्मा, अपने गहरे आंतरिक स्व के स्वास्थ्य और आनंद को बनाए रखने के लिए इस का पोषण कैसे करते हैं,?
योगी कहते हैं कि आत्मा स्रोत से आ रही कृपा और प्राण पर पनपती है। जिसे हृदय से उठी प्रार्थना पूर्ण पुकार और एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक जो उस कृपा को हमारे हृदय की ओर मोड़ सके, के द्वारा सक्रिय किया जा सकता है ।
स्व या आत्मा शाश्वत है जो हमें असीम संभावनाएँ प्रदान करती है। इसकी भलाई जीवन के अनुभवों को सीख, खुशियों और प्रेमपूर्ण क्षणों में बदल देती है। इस प्रकार कोषों के दर्शन का गहरा महत्व है जो मानसिक और भावनात्मक पोषण की आधार शिला के रूप में कार्य करता है।

मानसिक स्वच्छता के लिए ध्यान करें:
बाहरी स्वच्छता संक्रमण से हमारी सुरक्षा करती है और आंतरिक स्वच्छता मानसिक पीड़ाओं से सुरक्षा करती है। गलत आदतें और नैतिकता तथा नियमों का उल्लंघन आंतरिक स्वच्छता को नष्ट करते हैं जिससे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। यह उथल-पुथल हमारी नींद को बाधित करती है, हमारी आध्यात्मिक जीवन शैली को अस्त-व्यस्त कर देती है और हमारी बुद्धि को धूमिल करती है। इस कोहरे में सही और गलत, अच्छे और बुरे, कारण और प्रभाव के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।

अपने हृदय और मन को जागरूक और ईमानदार कैसे बनाएँ? हम आत्म-चिंतन और ध्यान के माध्यम से अपने आप को केंद्रित करते हैं और अपने वास्तविक सार में पहुँच कर स्थित होते हैं। स्वस्थ रहने के लिए संस्कृत के शब्द, ‘स्वास्थ्य’ का अर्थ है स्वयं में स्थित होना। ऐसा व्यक्ति जीवन के भयंकर तूफानों के बीच भी आंतरिक शांति बनाए रखते हुए अविचलित रहता है। इसके विपरीत, परिधि पर रहने वालों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

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गंभीर बीमारी में एंटीबायोटिक्स और सर्जरी आवश्यक हैं और टीके प्रतिरक्षा के अंतराल को पाटते हैं। आधुनिक चिकित्सा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालाँकि आहार समायोजन, व्यायाम, स्वस्थ नींद, प्राणायाम और योग आसन भी महत्वपूर्ण समाधान प्रदान करते हैं। इन सबसे ऊपर, ध्यान के सरल अभ्यास स्वभाव को ध्यानपूर्ण और प्रार्थनापूर्ण बनाते हैं जिससे हमें संयम और धैर्य के साथ संकटों का सामना करने के लिए शक्ति मिलती है।

मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए टीकाकरण:
इन दिनों हमारे पास चेचक, चिकनपॉक्स और कोविड तक लगभग सभी शारीरिक बीमारियों के खिलाफ टीके हैं। मन और भावनात्मक हृदय के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए क्या कोई टीका हो सकता है? ध्यान ही इसका उपाय है। एक हृदय-आधारित ध्यान, जैसे योगिक संचरण या प्राणाहुति द्वारा सहायता प्राप्त हार्टफुलनेस ध्यान और हार्टफुलनेस सफाई, जो अधिकांश आधुनिक विकृतियों की मनोदैहिक प्रकृति को पहचानते हैं, दैनिक तनाव और चिंताओं को कम करते हैं|

जीवन शैली से प्रेरित बीमारियों में उच्च रक्तचाप और मधुमेह ही नहीं, गंभीर अल्सर, विभिन्न कैंसर और वंशानुगत प्रभाव तक शामिल हैं। एक ध्यानपूर्ण, प्रार्थनापूर्ण जीवन शैली आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देती है, डिजिटल लत पर अंकुश लगाती है और इलेक्ट्रॉनिक विकिरण से बचाती है। यह नींद की प्रक्रिया को स्वस्थ स्वरूप देती है और एक उच्च वास्तविकता में विश्वास पैदा करती है जो पवित्र हृदय के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करती है।
सोने से पहले हृदय में दिव्य प्रकाश से जुड़ना एक आदत बन कर हमारी हर गतिविधि को हृदय-केंद्रित जीवन में शामिल कर लेता है। छोटे बच्चों को भी हार्टफुलनेस रिलैक्सेशन से अकादमिक सुधार, खेल कूद में बेहतर प्रदर्शन, बढ़ी हुई रचनात्मकता और इनसे मिलने वाली अत्यधिक खुशी का लाभ मिलता है।

जाने से पहले:

सेरोटोनिन और मेलाटोनिन के स्तर, टेलोमेयर की लंबाई और स्वास्थ्य के ऐसे अनेक संकेतकों पर हार्टफुलनेस जीवन शैली के प्रभावों पर महत्वपूर्ण शोध किया गया है। अन्य कई संकेतको में भी शोध की आवश्यकता है। आधुनिक अनुसंधान निश्चित रूप से मानव स्वास्थ्य में इस सहस्राब्दी के व्यक्तिपरक अनुसंधान का पूरक होगा।
ध्यान के अभ्यास मानसिक स्वास्थ्य, भावनात्मक सामंजस्य और आत्म-जागरूकता को बढ़ाते हैं। वे चिंता को कम करते हैं, स्थिरता लाते हैं और आंतरिक शांति को बढ़ावा देते हैं, हमारे अस्तित्व के मूल, यहाँ तक कि हमारे डीएनए पर भी असर डालते हैं।

हालाँकि अनमोल खजाना इस रहस्योद्घाटन में निहित है:
ध्यान केवल स्वास्थ्य संबंधी लाभों तक नहीं, बल्कि उनसे बहुत आगे की चीज है। यह पल-पल खिलते हुए जीवन के शाश्वत सार को प्रकट करता है। ध्यान और कल्याण के बीच यह सामंजस्यपूर्ण अंतःक्रिया शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक क्षेत्रों से परे फैली हुई है, जो हमें आनंद, स्वास्थ्य और हार्दिक खुशी में लिपटे हुए जीवन से असीम उत्साह के साथ मिलन के लिए आमंत्रित करती है।

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