आधुनिक समय में भगवत गीता का रहस्य और प्रासंगिकता – कमलेश पटेल (दाजी),

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Dehradun –  भगवत गीता हजारों साल से लाखों लोगों केलिए एक प्रकाशपुंज बना हुआ हैI मानवता को यह इतिहास के एक ऐसे क्रांतिकारी मोड़ पर प्राप्त हुआ जब जीवन अनिश्चित था और शिष्टाचार और सदाचार खतरे में पड़ा हुआ थाI महाभारत के महायुद्ध के वक़्त अर्जुन बडी दुविधा में थे कि अपने ही भाई बंधुओं से कैसे युद्ध करें? उस वक़्त श्रीकृष्ण ने इसी गीता की सहायता से उनकी दुविधा को दूर करते हुए उन्हें एक स्पष्ट दृष्टिकोण दिया थाI गीतोपदेश महाभारत के रक्तचाप को रोक नहीं पाया क्योंकि उस युद्ध को रोकने हेतु किया हुआ हर प्रयास पहले ही विफल हो चुका थाI गीतोपदेश का मुख्य उद्देश सिर्फ अर्जुन की दुविधा को दूर करते हुए उसे उसके धार्मिक कर्तव्यों की याद दिलाना थाI

 

कृष्ण ने अर्जुन से कहा “तुम वह करो जो तुम्हारा दिल कहता है कि ‘यह तुम्हारा कर्तव्य है’… “I अर्जुन की समस्या का समाधान हुआ और आगे बढ़ते हुए उसने यश और कीर्ति पायीI उस महायुद्ध के बाद एक गौरवशाली और सुव्यवस्थित जीवनशैली की स्थापना हुयीI

 

यह 5000 वर्ष पहले की बात हैI

आज विचारवान नेताओं को यह महसूस होने लगा है कि वर्तमान काल में हमारे अस्तित्व और क्रमिक विकास पर जो खतरा मंडरा रहा है उस पर भगवत गीता रोशनी डाल सकता हैI महान इतिहासकार विल डुरेंट ने एक बार गीता में भगवान श्रीकृष्ण के संदेश की सराहना करते हुए कहा था कि अगर भारत इस संदेश को समझते हुए उसका पालन करता तो वह हरदम स्वतंत्र और स्वाधीन रहताI भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कुछ नेता जैसे बाल गंगाधर तिलक और विनोबा भावे गीता से बेहद प्रभावित थे और गीता पर दिये हुए उनके व्याख्यान इस सदी में भी प्रासंगिक हैंI व्यक्तिगत स्तर पर गीता हमें हमारे वैयक्तिक जीवन, कामकाज, और संबंधों से जुडे समस्याओं के समाधान ढूंढने में और किसी निश्चय पर पहुँचने में मदद करता हैI

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प्रेरणादायक कोचिंग और प्रशिक्षण हमारे अहं की संतुष्टि पर केंद्रित रहते हैं और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सुझाव देते हैंI यह प्रशिक्षण हमारे जुनून और मन की चपलता और हलचल पर आधारित होते हैंI हृदय केंद्रित ध्यान एक और प्रकार का प्रेरणादायक प्रशिक्षण है जिसमें महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती के अलावा भी बहुत कुछ पेश किया जाता हैI यह प्रशिक्षण शांति, संतुलन और हृदय के सुकून पर केंद्रित होता हैI यह गीता सार भी हैI

 

गीता ‘इस पल‘ की शक्ति को दर्शाता हैI भविष्य की चिंता, बीते हुए कल का दुःख और वर्तमान की निष्क्रियता- सब एक ही झटके में दूर हो जाते हैंI पूरी निष्ठा और आत्मविश्वास के साथ अपना कर्तव्य पालन करते हुये प्रतिष्ठा और संतृप्ति की तरफ बढते चलोI हममें धैर्य और धीरज तब पैदा होता है जब hamखुशी और ग़म को एक ही नजर से देखते हुए, उन्हें स्वीकारते हुए जब हम क्रोध, भय और लालसा के परे जाते हैंI किसी भी तरह के कार्य करने के लिए स्थितप्रज्ञ की अवस्था सबसे उत्तम हैI इसका मतलब है – किसी भी कार्य को तृप्त मन और शांत अंदाज में विवेक और दृढ़ता के साथ पूरा करनाI

 

अब कठिनाई यहाँ पर है!

भगवत गीता से सिर्फ कुछ ही लोग क्यों प्रेरित हुए हैं? यह किताब पिछले 5000 वर्षो से पूरी दुनिया केलिए उपलब्ध है! गीता के पहले विद्यार्थी अर्जुन की तरह यह किताब हम सबके लिये भी उसी तरह से क्यों नहीं उपयोगी सिद्ध हुई? इस पहेली के खोए हुए भाग कौन से हैं?

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सौ साल पहले एक ‘पिछड़े’ हुए देश का नेता लंदन की डाक व्यवस्था से बेहद प्रभावित हुआI उसने विभिन्न पतों पर रहने वाले अलग अलग लोगों के पत्रों को पोस्ट बॉक्स में में डलते देखाI सही पते पर डाकिये को पत्र पहुंचाते हुए भी उसने देखाI अपने देश वापस जाने के बाद उसने जगह जगह पत्र पेटियों(पोस्ट बॉक्सेस) को स्थापित किया, कुछ व्यक्तियों को डाकिये की नौकरी पर रखाI इन्हें पता ही नहीं था कि उन्हें करना क्या हैI फिर?? कुछ नहीं हुआI वह नेता फिर से लंदन गया और वहाँ के डाकघरों में जाकर उनकी कार्यप्रणाली को समझा पत्र वितरण का रहस्य तब उसकी समझ में आयाI

 

उसी तरह गीता के शिक्षक उसकी कुछ गुप्त और अदृश्य कडियों को देखने में असफल रहेI भगवत गीता सिर्फ रणभूमि पर दिया हुआ एक लंबा धर्मोपदेश नहीं थाI एक लंबे उपदेश केलिए तब समय ही नहीं थाI श्रीकृष्ण के सामने एक चुनौती थी कि ‘सरमन ऑन द माऊंट’ की तरह का उपदेश तो देना था,परंतु एक शांत पहाड़ी की चोटी पर नहीं अपितु रणभूमि के बीच स्थित रथ परI युवा राजकुमार अर्जुन के मन को शांत कर, उसके मन से भय और दुविधा को हटा कर उसके मन में कर्तव्य, साहस और लक्ष्य की स्पष्टता के मूलतत्वों का संदेश देने केलिए कृष्ण के पास बस कुछ ही पल थेI यह काम उन्होंने हृदय से हृदय तक प्राणाहुती द्वारा कियाI

 

यही उपनिषदों के साथ भी हुआI अवाचिक तरीके से सीधे विद्यार्थि के हृदय में इन्हें प्रसारित किया जाता था जिससे वे इन्हें आसानी से समझ कर, आत्मसात कर अपने जीवन में उनका अमल कर पाते थेI इस तरह उन दिनों एक बेहतर युवा पीढ़ी हुआ करती थी जो दृढ़ चरित्र रखते थे और सदाचार, शिष्टाचार और संस्कृति में प्रशिक्षित थेI

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मेरे आध्यात्मिक मार्गदर्शक, शाहजहांपुर के श्री राम चंद्र जी, जिन्हें हम प्यार से बाबुजी बुलाते थे, इसे योगिक या आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रसारण की कला कहा करते थे भले ही प्राचीन भारत में यह बहु प्रचलित था मगर यह एक गोपनीय और रहस्यमय कला थीI उनके गुरु का जीवन उद्देशय यही था कि मानवता की भलाई के लिए प्राणाहुती का प्रसार किया जाएI आज विश्व भर में फैले हुए प्रशिक्षकों द्वारा यह कार्य बहुत ही सुनियोजित रूप से किया जा रहा हैI बाबुजी ने लिखा है कि श्री कृष्ण ने मात्र 7-10 श्लोक कहे थे और अर्जुन को उनका अर्थ प्राणाहुती द्वारा उसे वह स्थिति प्रदान करके समझाया थाI इन स्थितियों को बाद में वेद व्यास ने 18 अध्यायों में समझाया थाI

 

इस तरह भागवत गीता की परंपरा हृदय केंद्रित ध्यान प्रणालियों में कायम है, जहाँ विभिन्न आध्यात्मिक अवस्थाओं का अनुभव हृदय से हृदय में प्रसारित किया जाता हैI अपने स्वयं के वास्तविक, प्रभावशाली उन्नती केलिए यह सेवा सबके लिए निःशुल्क उपलब्ध हैI

 

कमलेश पटेल जो दाजी के नाम से भी जाने जाते हैं, हार्टफुलनेस के मार्गदर्शक हैंI योगिक आध्यात्मिक अभ्यास के मूल तत्वों को बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि लोगों को अपने मन और भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद मिल सके और वे अपनी चेतना का पूरी तरह से विकास कर सकेंI विश्व भर के अलग अलग वर्गों, जाति, संप्रदाय के लाखों लोगों केलिए वे एक प्रेरणास्रोत हैं और आज की युवा पीढ़ी की ओर उनका विशेष ध्यान रहता हैI

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