ई वाई का सर्वेक्षण बताता है कि केवल 60% संगीत सृजनकर्ता पूर्णकालिक आधार पर अपने करियर को बना सकते है

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· ई वाई सर्वेक्षण बताता है कि भारतीय संगीत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 12,000 करोड़ रुपये उत्पन्न करता है

· भारत में संगीत प्रकाशन राजस्व तीन वर्षों में 2.5 गुना बढ़कर 884 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है

· ऑन-कॉल पेशेवर फीस और लाइव प्रदर्शन अधिकांश गीतकारों और संगीतकारों के लिए मुख्य आय के स्रोत रहे

· देश के सॉफ्ट पावर में संगीत महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है

 

देहरादून-  प्रमुख पेशेवर सेवा फर्म, ने भारत में संगीत प्रकाशन उद्योग की स्थिति पर पहली बार व्यापक रिपोर्ट दी है, जिसका नाम ‘संगीत सृजनकर्ता अर्थव्यवस्था: भारत में संगीत प्रकाशन का उदय’ है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य देश में संगीत प्रकाशन की वर्तमान स्थिति, बाजार की संभावना, और दृष्टिकोणों को लेकर मूल्यवान अनुमान देना है।

रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत में हर साल 40,000 संगीत रचनाकारों के योगदान से 20,000 से अधिक मूल गाने तैयार किये जाते है। हर साल संगीत, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 12,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व उत्पन्न करता है।

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जांच के फैसलों पर टिप्पणी करते हुए, ईवाई इंडिया मीडिया एंड एंटरटेनमेंट नेता आशीष फेरवानी ने कहा, “संगीत भारत के मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होने के साथ भारतीय सॉफ्ट पावर का महत्त्वपूर्ण सहयोगी है। देश में स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय लेबल ने बहुत समय तक संगीत सेगमेंट के साउंड रिकॉर्डिंग राजस्व को प्रोत्साहित किया। हालांकि, इसकी प्रयोगिता और वाद पर विचार के अलग-अलग नजरिए को देखते हुए, संगीत प्रकाशन का राजस्व बहुत कम है।”

एबीबीए के जाने-माने Björn Ulvaeus, जो अब इंटरनेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज ऑफ ऑथर्स एंड कंपोजर्स (सीआईएसएसी) के अध्यक्ष हैं, ने कहा, गीतकारों और संगीतकारों के कार्य हमारे जीवन को प्रेरित करने के साथ हमारी संस्कृतियों को समृद्ध करते हैं। प्रकाशकों और लेखक संघों के समर्थन से, वे अर्थव्यवस्थाओं के प्रेरक भी हैं, जो अन्य व्यवसायों को जाग्रृत करने के साथ लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। इस अध्ययन से हमारे क्षेत्र के बारे में बहुत से पाठकों की जागरूकता में सुधार किया जा सकता है।”

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EY द्वारा आयोजित पहली ऐसी जांच जिसमें 500 संगीत सृजनकर्ता ने भाग लिया, ने इस बात का संकेत दिया कि उनकी वित्तीय आय अनियमित और अक्सर सीमित होती है:

1. 87% उत्तरदाता अपने संगीत से ही जीवन यापन करना चाहते थे, लेकिन केवल 60% ही ऐसा कर पाए

2. पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करना, एक बार के भुगतान (अग्रिम शुल्क), लाइव प्रदर्शन और रॉयल्टी अधिकांश सृजनकर्ताओं के लिए मुख्य आय के स्रोत थे।

3. बहुमत मानते थे कि उन्हें संगीत उत्पादन और मोनेटाइजेशन के बारे में और भी ज्यादा सीखने की आवश्यकता है

4. केवल 56% उत्तरदाताओं के पास संगीत उत्पादन के लिए आवश्यक उपकरण और बुनियादी ढांचे तक पहुंच थी

5. 35% उत्तरदाताओं ने संगीत से कमाई का अधिकांश हिस्सा, यानी 50% से अधिक संगीत बनाने के लिए आवश्यक उपकरण, गियर, सॉफ्टवेयर और अन्य बुनियादी ढांचे पर पुनर्निवेश किया

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जबकि भारत विश्व औसत की तुलना में प्रति व्यक्ति के हिसाब से अधिक संगीत का उपभोग करता है, जिसके कारण ये रिकॉर्डेड संगीत से आने वाले राजस्व में 14वें स्थान पर है। इसके विपरीत, कानूनी स्पष्टता की कमी और परिणामस्वरूप कम अनुपालन जैसे विभिन्न मुद्दों की वजह से प्रकाशन राजस्व 23वें स्थान पर है।

इन चुनौतियों के बावजूद, भारत के संगीत प्रकाशन उद्योग में वृद्धि देखने को मिली है, जिससे वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 884 करोड़ रुपए (लगभग US$ 100 मिलियन) तक पहुंचा है। भारतीय परफॉर्मिंग राइट सोसायटी (IPRS) जिसमें 13,500 से अधिक लेखक सदस्य हैं, सरकार के समर्थन के कारण अपने राजस्व को बढ़ा रहे है, क्योंकि अब अधिक संगीत उपयोगकर्ता प्रकाशन आवश्यकताओं का अनुपालन कर रहे हैं।

 

 

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